हिंदी सार्थ पसायदान वारकरी भजनी मालिका
वारकरी भजनी मालिका
WARKARI BHAJNI MALAIKA
हिंदी सार्थ पसायदान
(ज्ञानेश्वरी अध्याय १८ वा, ओवी १७९४ ते १८०२.)
1. हिंदी सार्थ पसायदान
(ज्ञानेश्वरी अध्याय १८ वा, ओवी १७९४ ते १८०२.)
सार्थ पसायदान मराठी इंग्रजी सार्थ पसायदान
पसायदान (प्रसाद) ज्ञानेश्वर महाराज रचित हिंदी अर्थ सहित ।
आता विश्वात्मकें देवें । येणे वाग्यज्ञें तोषावें ।
तोषोनिं मज ज्ञावे ।
पसायदान हें ॥१ ॥
( अब हे विश्वात्मक देव मेरे वाक्य यज्ञ के द्वारा संतुष्ट हो कर मुझे ये प्रसाद दीजिये । )
जें खळांची व्यंकटी सांडो । तया सत्कर्मीरती वाढो ।
भूतां परस्परे पडो ।
मैत्र जीवाचें ॥२ ॥
(जो खल दुष्ट लोक है उनकी दुष्टता खत्म हो और सत्कर्म में वो रत हो जाये । लोगो में मित्रता बढे । )
दुरितांचे तिमिर जावो । विश्व स्वधर्म सूर्यें पाहो ।
जो जे वांच्छिल तो तें लाहो ।
प्राणिजात ॥३ ॥
(जो पापी है उनका अन्धकार नाश हो और स्वधर्म रूपी सूर्य का उदय हो । जो जिसकी मंगल ईच्छा हो उसको वो प्राप्त हो जाये । )
वर्षत सकळ मंगळी । ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी ।
अनवरत भूमंडळी ।
भेटतु भूतां ॥४ ॥
( सर्व प्रकार के मंगल की वृष्टि करने वाले संत पृथ्वीपर अवतरित हो और प्राणिमात्रकों मिलते जाये । )
चलां कल्पतरूंचे आरव । चेतना चिंतामणींचें गाव ।
बोलते जे अर्णव ।
पीयूषाचे ॥५ ॥
(ये संत कल्पतरु वृक्षो के उद्यान है । चिंतामणि रत्नों के गाँव है । ये अमृत के समुद्र है । )
चंद्र्मे जे अलांछ्न । मार्तंड जे तापहीन ।
ते सर्वांही सदा सज्जन ।
सोयरे होतु ॥६ ॥
(ये दाग रहित चंद्रमा है । ताप हीन सूर्य है । ये संत सज्जन सबके सगे हो जाएँ । )
किंबहुना सर्व सुखी । पूर्ण होऊनि तिन्हीं लोकी ।
भजिजो आदिपुरुखी ।
अखंडित ॥७ ॥
(तीनो लोको ने सर्वसुख से परिपूर्णहोकर जो आदि पुरुष है उनकी सेवा करनी चाहिए । )
आणि ग्रंथोपजीविये । विशेषीं लोकीं इयें ।
दृष्टादृष्ट विजयें ।
होआवे जी ॥८॥
(ये ग्रन्थ जिनका जीवन है । उन्होंने इस जगत के दृश्य अदृश्य भोगों पर विजय पानी चाहिए । )
येथ म्हणे श्री विश्वेशराओ । हा होईल दान पसावो ।
येणें वरें ज्ञानदेवो ।
सुखिया जाला ॥९ ॥
(यहाँ ज्ञानेश्वर महाराज के गुरु जो उन्ही के बड़े भाई निवृत्ती नाथ कहते है । यही प्रसाद तुम्हे मिलेगा ।
😌ईस बात को सुनकर,ईस वरदान को पाकर ज्ञानदेव सुखी हुए । )