कूष्मांडा देवी मंत्र:, कथा, अर्थात अक्षय नवमी
अक्षय नवमी (अंग्रेज़ी: Akshaya Navami) कार्तिक शुक्ला नवमी को कहते हैं। अक्षय नवमी के दिन ही द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है। अक्षय नवमी को ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड[1] का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिये। विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
विषय सूची
1 धार्मिक मान्यताएँ
2 मथुरा-वृन्दावन परिक्रमा
3 युद्ध आह्वान दिवस
4 आंवला पूजन
5 पुनर्जन्म से मुक्ति का साधन
6 टीका टिप्पणी और संदर्भ
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धार्मिक मान्यताएँ
कार्तिक शुक्ला नवमी के दिन जितेन्द्रिय होकर तुलसी सहित सोने के भगवान बनाये। पीछे भक्तिपूर्वक विधि के साथ तीन दिन तक पूजन करना चाहिये एवं विधि के साथ विवाह की विधि करे। नवमी के अनुरोध से ही यहाँ तीन रात्रि ग्रहण करनी चाहिये, इसमें अष्टमी विद्धा मध्याह्नव्यापिनी नवमी लेनी चाहिये। धात्री और अश्वत्थ को एक जगह पालकर उनका आपस में विवाह कराये। उनका पुण्यफल सौ कोटि कल्प में भी नष्ट नहीं होता।
श्रीकृष्ण की मुरली की त्रिलोक मोहिनी तान और राधा के नुपुरों की रूनझुन का संगीत सुनाती और प्रभु और उनकी आल्हादिनी शक्ति के स्वरूप मथुरा-वृन्दावन और गरूड़ गोविंद की परिक्रमा मन को शक्ति और शान्ति देती है।
धर्म और श्रम के सम्मिश्रण से पर्यावरण संरक्षण संदेश के साथ यह पर्व भक्तों के मंगल के लिए अनेक मार्ग खोलता है।
मथुरा-वृन्दावन परिक्रमा
अक्षय नवमी को ही भगवान श्रीकृष्ण ने कंस वध से पहले तीन वन की परिक्रमा करके क्रान्ति का शंखनाद किया था। इसी परम्परा का निर्वहन करते हुए लोग आज भी अक्षय नवमी पर असत्य के विरुद्ध सत्य की जीत के लिए मथुरा-वृन्दावन की परिक्रमा करते हैं। मथुरा-वृन्दावन एवं कार्तिक मास साक्षात राधा-दामोदर स्वरूप है। इसी मास में श्रीकृष्ण ने पूतना-वध के बाद मैदान में क्रीड़ा करने के लिए नंदबाबा से गो-चारण की आज्ञा ली। गुजरात में द्वारिकानाथ, राजस्थान में श्रीनाथ, मध्य प्रदेश में गुरु संदीपन आश्रम, पांडवों के कारण पंजाब-दिल्ली के साथ अन्य अनेक लीला स्थलियों से आने वाले श्रद्धालु ब्रज की परिक्रमा करते हैं। नियमों से साक्षात्कार कराने के लिए प्रभु ने अक्षय नवमी परिक्रमा कर असत्य का शंखनाद और एकादशी परिक्रमा करके अभय करने के लिए प्रभु ने ब्रजवासियों का वृहद समागम किया।
युद्ध आह्वान दिवस
श्रीकृष्ण ने ग्वाल बाल और ब्रजवासियों को एक सूत्र में पिरोने के लिए अक्षय नवमी तिथि को तीन वन की परिक्रमा कर क्रांति का अलख जगाया। मंगल की प्रतिनिधि तिथि नवमी को किया। क्रांति का शंखनाद ही अगले दिन दशमी को कंस के वध का आधार बना।
आंवला पूजन
अक्षय नवमी को आंवला पूजन स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शांति, आयु एवं संतान वृद्धि होती है। पुराणाचार्य कहते हैं कि आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।
पुनर्जन्म से मुक्ति का साधन
नवमी के दिन युगल उपासना करने से भक्त शान्ति, सद्भाव, सुख और वंश वृद्धि के साथ पुनर्जन्म के बंधन से मुक्ति प्राप्त करने का अधिकारी बनाता है। प्रभु का दिया धर्म ही जीव को नियमों की सीख देता है। जो मनुष्य क़ानून के दंड से नहीं डरते उन्हें यह राह दिखाता है।
Amla Navami 2022: आवंले के पेड़ के नीचे करें ये काम, हर मनोकामना होगी पूरी
Amla Navami 2022: भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में अक्षय पुण्य फल की कामना के संग मनाया जाने वाला पर्व अक्षय नवमी कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन हर्ष, उमंग एवं उल्लास के साथ मनाया जाता है.
वाराणसी: अक्षय नवमी आज है. इसको आंवला नवमी या कुष्माण्ड नवमी के नाम से भी जाना जाता है. अक्षय नवमी जैसा कि नाम से स्पष्ट है कि इस दिन किए गए पुण्य और पाप, शुभ-अशुभ समस्त कार्यों का फल अक्षय (स्थायी) हो जाता है. तीन वर्ष तक लगातार अक्षय नवमी का व्रत-उपवास एवं पूजा करने से अभीष्ट की प्राप्ति बतलाई गई है.
ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि 01 नवम्बर, मंगलवार को रात्रि 11 बजकर 05 मिनट पर लग चुकी है, जो कि अगले दिन 2 नवम्बर, बुधवार को रात्रि 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगी. अक्षय नवमी का व्रत 2 नवम्बर, बुधवार को रखा जायेगा. अक्षय नवमी (Amla Navami 2022) के दिन व्रत रखकर भगवान श्री लक्ष्मीनारायण श्री विष्णु की पूजा अर्चना तथा आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे बैठकर भोजन करने की पौराणिक व धार्मिक मान्यता है. पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए.
व्रतकर्ता को अपने दैनिक नित्य कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान ध्यान के पश्चात् स्वच्छ वस्त्र पहनकर अक्षय नवमी के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. भगवान श्री लक्ष्मीनारायण की पंचोपचार, दशोपचार या षोडशोपचार पूजा की जाती है. आज के दिन भगवान श्रीविष्णु का प्रिय मंत्र- ॐ नमो भगवते वासुदेवाय का जप अधिकतम संख्या में करने पर भगवान शीघ्र प्रसन्न होकर भक्त को उसकी मनोकामना पूर्ति का वरदान देते हैं.
अक्षय नवमी पर पूजा का विधान: ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि पौराणिक मान्यता के अनुसार इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा से अक्षय फल कभी न खत्म होनेवाले पुण्यफल) की प्राप्ति (Amla Navami importance) होती है, साथ ही सौभाग्य में अभिवृद्धि होती है. इस पर्व पर आँवले के वृक्ष की पूजा पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से की जाती है. पूजा करने के बाद वृक्ष की आरती करके परिक्रमा करनी चाहिए. कुष्माण्ड (कोहड़ा) का दान भी किया जाता है.
इसमें अपनी सामर्थ्य के अनुसार सोना, चाँदी व नगद द्रव्य रखकर भूदेव कर्मनिष्ठ ब्राह्मण को दान देने से पुण्यफल की प्राप्ति होती है. आँवले के वृक्ष के समीप या नीचे ब्राह्मण को सात्विक भोजन कराकर दान-दक्षिणा देकर पुण्य अर्जित करना चाहिए. इसके अलावा अन्न, घी एवं अन्य जरूरी वस्तुओं का दान देना भी अक्षय फल की प्राप्ति कराता है. आज के दिन गोदान करने की विशेष महिमा है.
आंवला नवमी की पौराणिक मान्यता: अक्षय नवमी के दिन किए गए दान से जीवन में जाने-अनजाने में हुए समस्त पापों का शमन हो जाता है. इस दिन पितृलोक में विराजित पितरों को शीत (ठण्ड) से बचाने के लिए संकल्प करके भूदेव ( ब्राह्मण) को ऊनी वस्त्र, कम्बल देने की शास्त्रीय मान्यता है. ज्योर्तिविद विमल जैन के अनुसार आँवले के पूजन के लिए यदि आँवले का वृक्ष उपलब्ध न हो तो मिट्टी के नए गमले में आँवले का पौधा लगाकर उसकी विधि-विधानपूर्वक पूजा-अर्चना करनी चाहिए जिससे जीवन में कल्याण होता रहे. आँवले के पूजन से सुहागिन महिलाओं का सौभाग्य अखण्ड रहता है. आँवले के वृक्ष के पूजन से सन्तान की प्राप्ति भी बतलाई गई है.
व्रतकर्ता के लिए विशेष: आंवला नवमी पर्व पर तन-मन-धन से पूर्णतया शुचिता के साथ व्रत आदि करना चाहिए, यदि तीन वर्ष तक लगातार व्रत करें तो मनोकामना की पूर्ति के साथ अभीष्ट की प्राप्ति भी होती है. व्रतकर्ता को दिन में शयन नहीं करना चाहिए पर अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. व्यर्थ को वार्तालाप से बचना चाहिए साथ ही मन-वचन-कर्म से शुभ कृत्यों की ओर अग्रसर रहना चाहिए.
कूष्माण्डा नवमी-kushmanda navami
KUSHMANDA NAVAMI, NAVAMI, कूष्माण्डा नवमी
कूष्माण्डा नवमी-KUSHMANDA NAVAMI कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी को आती हैं। कूष्माण्डा नवमी के दिन नारायण जी की पूजा होती हैं। पुराणों के अनुसार बताया गया हैं, कि इस समय द्वापर युग का अंत हुआ था। अर्ताथ त्रित्यायुग कि शुरुआत हुई थी। हिन्दू धर्म में मान्यता हैं, कि इस दिन व्रत लिया जाता हैं।
और अपनी मनोकामनाए पूर्ण होती हैं। कूष्माण्डा नवमी को मराठी व्यक्तित्व में ज्यादा मनाया जाता हैं। कार्तिक शुक्ल पक्ष कि नवमी से पूर्णिमा तक आंवले में भगवान लक्ष्मी नारायण का वास होता हैं इस दिन आंवले और पीपल का विवाह कराने का रिवाज हैं। कहते हैं, कि आंवले और पीपल का विवाह कराने से अधिक पुण्य कि प्राप्ति होती हैं, तथा इसका पुण्य फल करोडो जन्मो तक खत्म नहीं होता हैं।
कूष्माण्डा नवमी क्यों मनाई जाती हैं
कूष्माण्ड़ा नवमी का अर्थ
कूष्माण्डा नवमी-KUSHMANDA NAVAMI क्यों मनाई जाती हैं
कूष्माण्डा नवमी क्यों मनाई जाती हैं, क्योकि इस दिन भगवान विष्णु जी ने कूष्माण्डा नामक एक दैत्य का संहार किया था। जिससे इस दिन को कुष्मांडा नवमी के नाम से जाना जाता हैं। कूष्माण्डा नामक दैत्य के अत्याचार से पिड़ित इस दुनिया को बचाने के लिए भगवान लक्ष्मीनारायण ने इस धरती पर अपना आगमन किया था।
अर्ताथ भगवान विष्णु इस पृथ्वी पर माता लक्ष्मी के साथ अवतरीत हुए थे। इस दिन माता ने भी धरती पर कूष्माण्डा के नाम से भी इस दिन को ममाना गया है। यह दिन माता के चौथे रूप के अवतार दिवस के रूप में माना गया हैं। माता कूष्माण्डा की पूजा अर्चना भी की जाती हैं। कूष्माण्डा नवमी को कुष्माण्ड नवमी भी कहा जाता हैं। अर्ताथ नवरात्रियों में चौथी नवरात्री माता कूष्माण्डा की पूजा होती हैं।
कूष्माण्डा नवमी-KUSHMANDA NAVAMI अर्ताथ कूष्माण्ड का अर्थ
कूष्माण्ड नवमी अर्थात यह हैं, कि ये एक बीज हैं, जिसे कद्दू के ना से जाना जाता हैं। जब विष्णु जी ने कूष्माण्ड दैत्य का वध किया था तो उसके वध के बाद कूष्माण्ड दैत्य के बीज हो गए थे, जो अनेक जगह पर बिखर गये थे। उनसे बेल, जिसे लग भी कहा जाता हैं। उसका निर्माण हुआ और इस बेल के निर्माण से एक सब्जी का निर्माण हुआ जिसे हिन्दू धर्मं में बड़े चाव से बनाया जाता हैं। यह सब्जी बेलो से उत्पन्न होती हैं। तथा इसे सभी लोग लगते हैं। इसके अनेक नाम हैं जैसे- आमक, कद्दू, काशीफल, कुम्हड़ा, कूष्माण्ड, कोहड़ा, सीताफल आदि इसके प्रमुख नाम हैं।
कुष्मांडा देवी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार जब सृष्टि की उत्पत्ति नहीं हुई थी यानी सृष्टि की उत्पत्ति होने के पूर्व चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा था, कोई भी जीव जंतु इस पृथ्वी पर नहीं था। तब मां दुर्गा की शक्ति कुष्मांडा देवी ने ही इस आंड यानी ब्रह्मांड की रचना की। इसी कारण इन्हें कूष्मांडा कहा जाता है।
शास्त्रों में उल्लेख है कि मां कुष्मांडा ने अपने मंद हास्य से सृष्टि की रचना की थी उनके पास इतनी शक्ति है कि वह सूरज के घेरे में भी रह सकती हैं। देवी कुष्मांडा सूरज के ताप को भी सहन कर सकती हैं।
इनकी उपासना करने से भक्तों के जीवन में नई ऊर्जा उत्पन्न होती है और साधक को सभी प्रकार की शक्तियां प्राप्त होती हैं।
आंवला नवमी पूजा से होती है अखंड सौभाग्य, आरोग्य, संतान और सुख की प्राप्ति
। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘आंवला नवमी’ या ‘अक्षय नवमी’ कहते हैं। यह इस बार दिनांक 02 नोव्हेंबर 2022 दिन शनिवार को पड़ रही है। इस दिन आंवले के वृक्ष की पूजा की जाएगी जिससे अखंड सौभाग्य, आरोग्य, संतान और सुख की प्राप्ति होती है। अगर आप चाहते हैं कि आपके घर में हमेशा धन वर्षा होती रहे तो इस अक्षय नवमी के शनिवार को इन उपायों से आप लक्ष्मी को प्रसन्न कर सकते हैं।
मान्यता है कि इसी दिन द्वापर युग का आरंभ हुआ था। कहा जाता है कि आज ही विष्णु भगवान ने कुष्माण्डक दैत्य को मारा था और उसके रोम से कुष्माण्ड की बेल हुई। इसी कारण कुष्माण्ड का दान करने से उत्तम फल मिलता है। इसमें गन्ध, पुष्प और अक्षतों से कुष्माण्ड का पूजन करना चाहिए। साथ ही आज के दिन विधि विधान से तुलसी का विवाह कराने से भी कन्यादान तुल्य फल मिलता है।
पूजन विधि
प्रात:काल स्नान कर आंवले के वृक्ष की पूजा की करें। पूजा करने के लिए आंवले के वृक्ष की पूर्व दिशा की ओर उन्मुख होकर षोडशोपचार पूजन करें। दाहिने हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि लेकर व्रत का संकल्प करें। संकल्प के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुख कर
ॐ धात्र्यै नम:
मंत्र से आह्वानादि षोडशोपचार पूजन करके आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरों का तर्पण करें। इसके बाद आंवले के वृक्ष के तने में कच्चे सूत्र लपेटें। फिर कर्पूर या घृतपूर्ण दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें।
विष्णु का स्वरूप है आंवला
शास्त्रों के अनुसार आंवला, पीपल, वटवृक्ष, शमी, आम और कदम्ब के वृक्षों को चारों पुरुषार्थ दिलाने वाला कहा गया है। इनके समीप जप-तप पूजा-पाठ करने से इंसान के सभी पाप मिट जाते हैं। पद्म पुराण में भगवान शिव ने कार्तिकेय से कहा है ‘आंवला वृक्ष साक्षात् विष्णु का ही स्वरूप है। यह विष्णु प्रिय है और इसके स्मरण मात्र से गोदान के बराबर फल मिलता है।’
माता लक्ष्मी से संबंध
आंवला वृक्ष की पूजा और इस वृक्ष के नीचे भोजन करने की प्रथा को चालू करने वाली माता लक्ष्मी मानी जाती है। इस संदर्भ में कथा है कि एक बार माता लक्ष्मी पृथ्वी भ्रमण करने आईं। मार्ग में भगवान विष्णु एवं शिव की पूजा एक साथ करने की इच्छा हुई। लक्ष्मी जी ने विचार किया कि एक साथ विष्णु एवं शिव की आंवले के वृक्ष को विष्णु और शिव का प्रतीक चिह्न मानकर माता लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष की पूजा की।
पूजा से प्रसन्न होकर विष्णु और शिव प्रकट हुए। लक्ष्मी माता ने आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाकर विष्णु और भगवान शिव को भोजन करवाया। इसके बाद स्वयं भोजन किया। जिस दिन यह घटना हुई थी उस दिन कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि थी। इसी समय से यह परंपरा चली आ रही है। इस दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव न हो तो इस दिन आंवला जरूर खाना चाहिए।
जानिए क्या है ये उपाय ?
तंत्र शास्त्र के अनुसार कुछ साधारण मगर सटीक उपाय करने से माता लक्ष्मी अपने भक्त पर शीघ्र ही प्रसन्न हो जाती हैं और अगर जन्म कुंडली में शनि अपनी दशा में अशुभ फल दे रहा है। शनि के बुरे प्रभाव से परेसनियों और बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है जिससे कि आपको जीवन में सुख नाम की कोई चीज न नही रही। उनके लिए आप नए-नए उपाय बता रहे हैं जिससे कि आपका यह ग्रह सही हो जाए।
शनि ग्रह के दोष को दूर करने और माता लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के उपाय बता रहे हैं जिनके पालन करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं। अक्षय नवमी के शनिवार को यह उपाय करने से आप जीवन में प्रसन्नता प्राप्त कर सकते हैं।
माता लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने के लिए यह उपाय करें….
ज्योतिषों के अनुसार अक्षय नवमी के शनिवार के दिन दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर भगवान विष्णु का अभिषेक करें। इस उपाय में मां लक्ष्मी जल्दी प्रसन्न हो जाती हैं।
अक्षय नवमी के दिन सुबह स्नान समय अपने आवंला के रस की कुछ बूंदे अपनी स्नान के पानी में डालें। इससे स्नान करने से माता प्रसन्न होगी। साथ ही नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है। क्योंकि अक्षय नवमी के आंवला के वृक्ष की पूजा की जाती है।
इस दिन शाम के समय घर के ईशान कोण में भैंस के घी का दीपक लगाएं। बत्ती में रुई के स्थान पर लाल रंग के धागे का उपयोग करें साथ ही दीपक में थोड़ी सी केसर भी डाल दें।
शनिवार को पांच कुंवारी कन्याओं को घर बुलाकर खीर खिलाएं तथा पीला वस्त्र व दक्षिणा देकर विदा करें। इससे माता लक्ष्मी जी बहुत प्रसन्न होती हैं।
इस दिन दान देने का भी विशेष महत्व है इसलिए इस दिन जितना हो सके गरीबों को दान करें। काले रंग की वस्तु या खाद्य पदार्थ का दान करें तो और शुभ रहेगा।
शनिवार को श्रीयंत्र का भैंस के दूध के अभिषेक करें और अभिषेक का जल पूरे घर में छिंटक दें व श्रीयंत्र को कमलगट्टे के साथ धन स्थान पर रख दें। इससे धन लाभ होने लगेगा।
शनिवार को गाय की सेवा करें श्यामा गाय मिल जाए तो और अच्छा है। इससे आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाएंगी।
अगर आपकी कुंडली में शनि दोष है तो अक्षय नवमी के शनिवार को भैंस, बकरी का जोड़ा या फिर काले कौये को दाना या फिर ब्रेड खिलाना चाहिए। ऐसा करने से शनि ग्रह मजबूत होता है।
शनिवार के दिन दूध ,दही, तेल, मीठा, काले रेशमी वस्त्र, इमारती आदि का दान करना लाभकारी साबित होगा।
शनि से सम्बन्धित रत्न का दान भी लाभप्रद होता है।
शनि ग्रह की शांति के लिए ब्राह्मणों एवं गरीबों को दूध और चावल खिलाएं।
किसी लंगड़े व्यक्ति को काले वस्त्र एवं मिष्ठान्न का दान करें।
किसी कन्या के विवाह में कन्यादान का अवसर मिले तो अवश्य स्वीकार करें।
देवी कूष्माण्डा का पूजा मंत्र-
ॐ देवी कूष्माण्डायै नमः॥
या देवी सर्वभूतेषु मां कूष्मांडा रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
वन्दे वांछित कामर्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा अष्टभुजा कूष्माण्डा यशस्वनीम्॥
भास्वर भानु निभां अनाहत स्थितां चतुर्थ दुर्गा त्रिनेत्राम्।
कमण्डलु, चाप, बाण, पदमसुधाकलश, चक्र, गदा, जपवटीधराम्॥
पटाम्बर परिधानां कमनीयां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल, मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदनांचारू चिबुकां कांत कपोलां तुंग कुचाम्।
मां कूष्मांडा देवी की आरती – Maa Kushmanda Devi Ki Aarti
कूष्मांडा जय जग सुखदानी।
मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली।
शाकंबरी माँ भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।
भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।
स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदंबे।
सुख पहुँचती हो माँ अंबे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा।
पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी।
क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा।
दूर करो माँ संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।
मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए।
भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥