दृष्टांत 23 कुणाचे अन्नाने नरक प्राप्त होते
एक बार एक ऋषि ने सोचा कि, लोग गंगा में पाप धोने जाते हैं, तो इसका मतलब हुआ कि, सारे पाप गंगा में समा गए और गंगा भी पापी हो गयी । अब यह जानने के लिए तपस्या की, कि पाप कहाँ जाता है ? तपस्या करने के फलस्वरूप देवता प्रकट हुए । ऋषिने पूछा कि,भगवन जो पाप गंगा में धोया जाता है वह पाप कहाँ जाता है ? भगवनने कहा कि, चलो गंगा से ही पूछते है । दोनों लोग गंगा के पास गए, और कहा कि, हे गंगे ! सब लोग तुम्हारे यहाँ
पाप धोते है, तो इसका मतलब आप भी पापी हुई । गंगाने कहा, मैं क्यों पापी हुई, मैं तो सारे पापोंको ले जाकर समुद्र को अर्पित कर देती हूँ । अब वे लोग समुद्र के पास गए । हे सागर ! गंगा जो पाप आपको अर्पित कर देती है, तो इसका मतलब आप भी पापी हुए ? समुद्रने कहा, मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापों को लेकर भाप बना कर बादल बना देता हूँ । अब वे लोग बादलके पास गए। हे बादल, समुद्र जो पापोंको भाप बनाकर बादल बना देते है, तो इसका मतलब आप पापी हुए । बादलोंने कहा, मैं क्यों पापी हुआ, मैं तो सारे पापोंको वापस पानी बरसा कर धरती पर भेज देता हूँ । जिससे अन्न उपजता है, जिसको मानव खाता है । उस अन्नमें जो अन्न जिस मानसिक स्थितिसे उगाया जाता है, और जिस वृत्ति से प्राप्त किया जाता है, जिस मानसिक
अवस्था में खाया जाता है, उसी अनुसार मानवकी मानसिकता बनती है । शायद इसीलिये कहते हैं ..” जैसा खाए अन्न, वैसा बनता मन ” अन्न को जिस वृत्ति ( कमाई ) से प्राप्त किया जाता है, और जिस मानसिक अवस्था में
खाया जाता है, वैसे ही विचार मानव के बन जाते है। इसीलिये सदैव भोजन शांत अवस्था में, पूर्ण रूचि के साथ करना चाहिए । और कम से कम अन्न जिस धन से खरीदा जाए, वह धन भी श्रम का होना चाहिए । क्योकि मनुष्य का किया पापकर्म उसके धान्य में बसता है।