हिंदू संस्कृती रोग नाशक आहे
*‼सनातनी परम्परा ‼*
*भुने जाते अन्न का धुंआ कीटाणुनाशक होता है और वातावरण को शुद्ध करता है..!!*
पीसे हुए अन्न के चूर्ण, जैसे बाजरे के आटे से हाथ धोने पर वे अत्यंत शुद्ध और निरापद हो जाते हैं , पक्वान्न, जैसे भात, चूरमा, करबा आदि को हाथ से खाकर, (चम्मच नहीं) उंगलियां चाटने के बाद हल्का धोकर परस्पर रगड़ने से वे दिन भर साफ और रोगाणुरोधी बने रहते हैं..!!
मूंछों के घी या सरसों तेल लगाने से नाक के रास्ते वायरस नहीं घुसते..!!
फॉर्मेट भोज्य पदार्थों की महक, जैसे खमीर,दही, छाछ, सिरका, ताड़ी, अचार, मुरब्बा, अवलेह, आसव नित्य वायरस रोधी होते हैं..!!
एक वर्ष में पककर नष्ट हो जाने वाली सभी वनस्पतियों का धुंआ रोगाणुनाशक होता है..!!
कपूर, उपले, घी, यज्ञ सामग्री, उड़ती गोधूलि, इत्यादि स्वाभाविक ही रोगनाशक होती है..!!
सूर्य किरण, चन्द्रज्योत्सना, दीपक का प्रकाश, घण्टा और शंख की ध्वनि, चर्म जड़ित वाद्यों का शोर, मंदिर की पताका के दर्शन मंत्रोच्चार, संस्कृत भाषा का श्रवण, निःसंदेह रोगनाशक होता है और बल में वृद्धि करता है..!!
राजा, योगी और वृद्धों का संग, ॐ का जप, ऋषियों की वाणी आंख बंद कर सुनना, सती स्त्री का ध्यान, सुहागिन के दर्शन, अलंकारों की ध्वनियां, पक्षियों का कलरव, बच्चों की किलकारियां, सामूहिक गायन, गाय और बछड़े की परस्पर रम्भाने की आवाज, चिड़िया के पंखों की फ़र्फ़राहट, स्वर्ण, रजत, मणि और रत्नों का स्पर्श भी रोगनाशक होता है।
गोबर, गौमूत्र, कुंकुम, चंदन, हल्दी, सिंदूर, भस्म, ताजे पत्ते, वृक्षों की छाल, गहरे कुँए का जल, गंगाजल, देवप्रतिमा का चरणामृत, पुष्पराग, ये सब स्वभाव से ही आरोग्यकारी हैं..!!
जिन फलों पर मक्खी नहीं बैठती, जैसे संतरा, इनके छिलके रोगनाशक होते है , अपने ही सिर का पसीना रोगनाशक होता है। उससे तर गमछा या पगड़ी से चेहरा पोंछने पर या उससे छान कर जल पीने से अनेक रोग नष्ट हो जाते हैं..!!
कृत्रिम, आधुनिक और प्लास्टिक के स्वच्छ से दिखने वाले पदार्थ, यथा पेन, मोबाइल, कीबोर्ड, चश्मा इत्यादि महान अनर्थकारी और रोगाणुओं के आश्रय हैं..!!